रसोई गैस के दाम बढ़ने के बाद अधिकांश परिवार परंपरागत ईंधनों से खाना बनाने लगे हैं। वहीं दूसरी तरफ सरकार ने रसोई गैस पर मिलने वाली सब्सिडी भी बंद कर दि है। काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर(CEEW) ने अपने एक सर्वे में बताया कि देश के 54 प्रतिशत परिवार अब फिर से परंपरागत ईंधनों से खाना बनाने लगे हैं। हालांकि देश के 85 प्रतिशत परिवारों के पास एलपीजी कनेक्शन मौजूद है।
दूसरी तरफ बात करें तो 2011 में जहां 28.5% घरों में ही एलपीजी कनेक्शन था 2020 में यह 71% घरों में पहुंच चुका था। इसका मुख्य कारण प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत मुफ्त दिया गया कनेक्शन है। लेकिन एलपीजी कनेक्शन होने के बावजूद भी खासकर के ग्रामीण इलाकों में लोग परंपरागत ईंधनों जैसे, गोबर के उपले, लकड़ी, कोयला, कृषि उत्पादों के अवशेष आदि से खाना बना रहे हैं। अधिकांश परिवारों द्वारा एलपीजी रिफिल ना कराने का मुख्य कारण इसका बढ़ता हुआ मूल्य है। वहीं ग्रामीण इलाकों में होम डिलीवरी उपलब्ध ना होने पाना भी इसका एक मुख्य कारण है।
परंपरागत ईंधनों का उपयोग वायु प्रदूषण का एक मुख्य कारण है। सबसे ज्यादा खराब स्थिति बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों की है। बता दें कि रसोई गैस के दाम बढ़ने की वजह से लोग परंपरागत ईंधनों के इस्तेमाल की तरफ बढ़ रहे हैं। क्यों एक वर्ष में रसोई गैस के दामों में लगभग 40% तक की वृद्धि हो चुकी है।