बिहार में 7400 फार्मासिस्ट के भरोसे हैं 40000 दवा दुकान। राज्य में बड़े पैमाने पर फार्मासिस्ट की जरूरत।

भारतीय औषधि एवं अंगराग अधिनियम के अनुसार बिना फार्मासिस्ट के कोई भी दवा दुकान का संचालन नहीं किया जा सकता। लेकिन बिहार में फार्मासिस्ट की भारी कमी है। सिर्फ 7400 फार्मासिस्ट के भरोसे राज्य के 40000 दवा दुकान चल रहे हैं। एक फार्मासिस्ट के लाइसेंस पर दर्जनों दुकानें चल रही हैं। ग्रामीण इलाकों को तो छोड़ दें बड़े-बड़े शहरों में भी हालात ऐसे ही है।

खाली हैं फार्मासिस्ट के हजारों पद।

दवाओं की बिक्री काम सिर्फ निबंधित फार्मासिस्ट ही कर सकते हैं। ऐसे में राज्य की अधिसंख्य दवा दुकानें और सरकारी अस्पतालों में दवाओं की खरीद- बिक्री और वितरण का काम गैर वैधानिक तरीके से किया जा रहा है। फार्मेसी काउंसिल को लेकर जारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में निबंधित फार्मासिस्टों की संख्या सिर्फ 7421 है। स्थिति यह है कि राज्य में 1932 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 306 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा कुल 4126 पद स्वीकृत किये गये हैं। लेकिन इनकी जगह पर सिर्फ 1077 फार्मासिस्ट ही कार्यरत हैं, जबकि 3049 पद रिक्त हैं।

भविष्य में बी-फार्मा डी-फार्मा कोर्स करने वालों की होगी जरूरत।

उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव ने मरीजों को जल्द दवा उपलब्ध कराने के लिए अधिक दवा काउंटर खोलने की घोषणा की है। इनके लिए फार्मासिस्टों की आवश्यकता है। ऐसे ही राज्य में खुदरा और थोक दवा दुकानों की संख्या करीब 40 हजार है। इसके अलावा राज्य में 6608 अस्पताल हैं जहां पर मरीजों को भर्ती करके इलाज किया जाता है। ऐसे में निकट भविष्य में फार्मेसी की पढ़ाई करने वाले छात्रों की बड़ी संख्या में जरूरत होगी।