सब्जी का ठेला लगाया, गन्ने का जूस बेचा। 4 बार हुए असफल लेकिन आखिर जज बनने का पूरा किया मां का सपना।

हमारे आसपास कई लोगों की कहानी ऐसी है जो काफी संघर्ष भरी है। कई लोगों को ऐसी कहानियां फिल्मी लगती है लेकिन यही हकीकत है। मध्य प्रदेश के रहने वाले एक शख्स की ऐसी कहानी है जो गरीबी में पले बढ़े। हालांकि उन्हें तुरंत सफलता भी नहीं मिल गई। 4 बार लगातार असफल हुए लेकिन अंततः अपना सपना पूरा किया। वो सपना जो उनकी मां ने देखा था।

माता-पिता करते थे मजदूरी।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मध्यप्रदेश के सतना जिले के अमरपाटन के रहने वाले शिवकांत कुशवाहा का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उनके पिता मजदूरी करते हैं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। किसी तरह दो वक्त के खाने का प्रबंध हो पाता था। एक कच्चे मकान में परिवार गुजर बसर करता था। हालांकि शिवकांत को बचपन से ही पढ़ने का शौक था। बेटे की पढ़ने की लगन देखकर मां ने उन्हें जज बनाने का सपना देखा था। अपने पुराने दिनों को याद करते हुए शिवकांत बताते हैं कि मजदूरी करके जब माता-पिता वापस घर आते थे तब हमारे यहां उस दिन का राशन आता था।

सब्जी का ठेला लगाया और गन्ने का जूस भी बेचा।

पढ़ाई करने के दौरान उन पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। साल 2013 में उनकी मां चल बसीं। मां की जुदाई शिवकांत के लिए आसान नहीं थी। लेकिन मां ने उनके लिए जो सपना देखा था। उसे शिवकांत किसी भी हाल में पूरा करने की ठान ली थी। घर की आर्थिक हालात को देखते हुए पढ़ाई करने के साथ कमाने भी लगे। शिवकांत सब्जी का ठेला लगाते। वहीं जब गर्मी का मौसम आता तब वे गन्ने का जूस बेचकर अपना पेट पालते।

लगातार चार बार मिली असफलता।

पढ़ाई के दौरान उन्हें कई मुसीबतों का सामना करना पड़ा। उन्होंने इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई अमरपाटन के सरदार पटेल स्कूल से पूरी की। इसके बाद अमरपाटन शासकीय कॉलेज में एडमीशन ले लिया। ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल करने के बाद ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय से LLB की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद शिवकांत कोर्ट में प्रैक्टिस करने के साथ-साथ सिविल जज की तैयारी करने लगे। लेकिन एक बार नहीं पूरे चार बार उन्हें असफलता मिली। बावजूद इसके शिवकांत पीछे नहीं हटे। वे मेहनत करते रहे।

लगातार मिल रही असफलताओं के बीच उनकी शादी भी हो गई। हालांकि उनकी पत्नी ने भरपूर साथ दिया।
वह भी एक निजी विद्यालय में पढ़ाती थी। उनकी पत्नी ने उनके हैंडराइटिंग सुधारने में काफी मदद की। अंततः सेल्फ स्टडी के दम पर बिना किसी कोचिंग के उन्होंने सिविल जज की परीक्षा पास की। उन्हें ओबीसी कोटे में पूरे प्रदेश में दूसरा स्थान मिला है।