नौकरी के साथ की यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी,पति ने परीक्षा की तैयारी के दौरान संभाला घर का सारा काम,जानिए IAS काजल ज्वाला की स्टोरी

हर साल लाखों की संख्या में अभ्यर्थी यूपीएससी की परीक्षा देते हैं लेकिन इन परीक्षा में सफल वही अभ्यार्थी हो पाते हैं जो कि कड़ी मेहनत करते हैं और अपने सपनों को साकार करने के लिए बहुत ही ज्यादा प्रयासरत रहते हैं.कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो के मुश्किलों से हार मानकर अपना सपना छोड़ देते हैं लेकिन कुछ ऐसे बच्चे होते हैं जो किस्मत से लड़ते रहते हैं.

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कुछ लोगों का मानना है कि शादी होने के बाद सपने अधूरे रह जाते हैं लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं जो कि अपने सपनों को साकार कर के लोगों के इन बातों को झूठा साबित कर देते हैं.

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हरियाणा के शामली की रहने वाली काजल की सफलता और उनके बीच का सबसे बड़ा रोड़ा था समय का अभाव. काजल यूपीएससी परीक्षा पास तो करना चाहती थीं पर कुछ कारणों की वजह से वे इस प्रतिष्ठित और कठिन परीक्षा की तैयारी के लिये नौकरी नहीं छोड़ सकती थीं. उन्होंने ऐसा ही किया और अपनी मेहनत, सही प्लानिंग और एकाग्रता के बल पर बिना कोचिंग के और नौकरी के साथ ही साल 2018 में 28वीं रैंक के साथ यह परीक्षा पास कर ली.

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विवाहित जीवन नहीं बनी बाधा

काजल ने एक साक्षात्कार में बताया कि आमतौर पर महिलायें शादी को एक प्रकार की रुकावट मानती हैं और शादी के समय ही यह तय कर लेती हैं कि इसके साथ कुछ भी अचीव कर पाना संभव नहीं. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया, उन्होंने शादी को कभी बोझ नहीं माना और इसमें उनके पति कि अहम भूमिका रही. उनके पति आशीष मलिक जो कि खुद इंडिया की अमेरिकन एमबेसी में काम करते हैं, उन्होंने हमेशा उनका सहयोग किया. कभी उन्हें घर के या ऐसे गैरजरूरी कामों में नहीं उलझाया जो उनके बिना हो सकते थे. फलस्वरूप काजल को जितना भी समय मिलता था वे सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई करती थीं.

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ऐसे निकाला टाइम

काजल ने अपने टाइम मैनेजमेंट के बारे में बात करते हुए एक साक्षात्कार में बताया कि उनका घर नोएडा में था और नौकरी गुड़गांव में. ऐसे में काफी समय आने-जाने में लग जाता था. काजल विप्रो कंपनी की अपनी नौकरी भी नहीं छोड़ सकती थी. ऐसे में वह कैब से आते-जाते समय रास्ते में पढ़ाई करती थीं. करीब तीन घंटे का समय उन्हें इसमें मिलता था. इस पीरियड में वे बेसिकली वह विषय चुनती थीं, जिसमें बहुत एकाग्रता नहीं चाहिये. जैसे करेंट अफेयर्स के लिये न्यूज पेपर और मैगजीन पढ़ने का काम वे इस समय करती थीं. घर आने के बाद उनके पास पढ़ने के लिये एक-डेढ़ घंटे से अधिक का समय नहीं बचता था पर इस टाइम पर वे पूरी एकाग्रता से पढ़ती थीं. इसके साथ ही वीकेंड्स पर वे अपना पूरा-पूरा समय पढ़ाई पर खर्च करती थीं.