शहीद जुब्बा सहनी का गांव है आज भी बदहाल। साथियों की मौत का बदला लेने के लिए अंग्रेज थानेदार को जला दिया था जिंदा।

जब भी कोई शहीदों का जिक्र करता है तो एक कविता की पंक्ति हमें अक्सर याद आ जाती है कि

” शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा।”

लेकिन बिहार की माटी के एक ऐसे शहीद हैं, जिनका गांव आज भी बदहाली की दंश झेल रहा है। वह वीर शहीद थे मुजफ्फरपुर के मीनापुर प्रखंड चैनपुर गांव के जुब्बा सहनी।
16 अगस्त 1942 के दिन, जुब्बा सहनी अपने आजादी के दीवानों की टोली के साथ, मुजफ्फरपुर जिले के मीनापुर थाने पहुंचे। अंग्रेजों की ताबड़तोड़ फायरिंग में उनके कई साथी मारे गए थे। इसी का बदला लेने के लिए उन्होंने मीनापुर के थानेदार वालर को थाना परिसर में ही जिंदा जला दिया था।

जब कोर्ट में जज ने उनसे पूछताछ की तो उन्होंने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया। और वह कोर्ट परिसर में दहाड़ते रहे, “वॉलर को मैंने मारा है”। इसके बाद 11 मार्च को उन्हें फांसी दे दी गई। उनकी याद में मुजफ्फरपुर में जुब्बा साहनी पार्क मनाया गया।

लेकिन देश के लिए शहीद होने वाले हैं इस वीर शहीद के गांव में आज भी बदहाली है। गांव में आज भी ना कोई सरकारी स्कूल है ना कोई स्वास्थ्य केंद्र है। हर तरफ गरीबी का आलम दिखता है चारों सड़क के दोनों तरफ झोपड़िया ही दिखती हैं।गांव के बच्चे दूसरे गांव में पढ़ाई करने जाते हैं।

वहां के मुखिया अजय साहनी बताते हैं गांव में 138 लोगों को प्रधानमंत्री आवास दिया गया है। लेकिन गांव में स्थिति काफी बदतर है। बिजली के तार जर्जर हो चुके हैं। बाढ़ आ जाने की स्थिति में इसका संपर्क शहर से कट जाता है।

वहीं पिछले वर्ष कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बात सामने आई थी कि जुबा साहनी का परिवार बहुत मुफलिसी में जी रहा है। उनकी बहू के पास इलाज कराने के पैसे भी नहीं थे। और उनका परिवार दाने-दाने को मोहताज हो चुका है।