एक तरफ बिहार और देश में बेरोजगारी चरम सीमा पर है। बेरोजगारों को नौकरी नहीं मिल पा रही है। प्रशिक्षित शिक्षक नौकरी की आस में दर-दर भटक रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे पद है जिसके लिए उम्मीदवार ही नहीं मिल पा रहे हैं। शिक्षक नियोजन प्रक्रिया के तहत कुछ ऐसे विषय हैं जिनके लिए शिक्षक ही नहीं मिल पा रहे हैं।
दरअसल बिहार में दूसरे चरण के शिक्षक नियोजन प्रक्रिया चल रही है। तरफ तो सामाजिक विज्ञान यानी कि सोशल साइंस के लिए काफी अभ्यर्थी आ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ भाषा वाले विषयों जैसे हिंदी, संस्कृत और उर्दू के लिए उम्मीदवार ही नहीं मिल पा रहे हैं।
हिंदी देश और प्रदेश की सबसे मुख्य भाषा है। इसके उम्मीदवार ना मिल पाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रदेश की दूसरी राजभाषा उर्दू की हालत तो और भी खराब है। इस विषय में ना के बराबर शिक्षक मिल रहे हैं। दरअसल 12वीं के बाद लोग भाषा वाली विषयों को पढ़ने में कम रुचि दिखा रहे हैं वे ज्यादातर विज्ञान और सामाजिक विज्ञान के विषय जैसे, फिजिक्स, केमेस्ट्री बायोलॉजी, मैथमेटिक्स, इतिहास, भूगोल और राजनीति शास्त्र मैं ज्यादा रुचि दिखाते हैं। हिंदी ऑनर्स जैसे सब्जेक्ट कोई नहीं लेना चाहता। भोजपुर जिले में उर्दू शिक्षक के कई पद खाली रह गए।
पटना जिले के कुछ आंकड़े नीचे हम आपको बता रहे हैं जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाषा विषयों के शिक्षकों की कमी किस हद तक है।
नौबतपुर प्रखंड में हिंदी के कुल 4 पद खाली थे जिसमें एक भी पद पर नहीं मिल पाए। वही संस्कृति कुल 16 पदों में सिर्फ 2 ही पद भर पाए। मोकामा में उर्दू के 9 पद खाली थे जिसमें सिर्फ 3 ही पद भर पाए।
बेलछी में 9 में से सिर्फ 2 पद उर्दू के भर पाए। बिहटा में संस्कृत के कुल 20 पड़े से 5 पद ही भर पाए।